Thursday, 11 June 2015

साथियों
राजग सरकार ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश दोबारा जारी कर दिया। पुराना अध्यादेश बीते पांच अप्रैल को समाप्त होने वाला था। उसके स्थान पर लाया गया बिल सरकार राज्यसभा में बहुमत के अभाव में पारित नहीं करा पाई। इसलिए नया अध्यादेश जारी करना पड़ा। संसद से लेकर सड़क तक भूमि अधिग्रहण पर हंगामा बरपा है।

आज के भारत में भूमि एक बड़ा मुद्दा है। नियोजन का आभाव व जनसंख्या का दबाव साथ ही मिथकीय चरित्र सुरसा की तरह बढ़ती  बेरोजगारी ने भूमि पर निर्भरता व दबाव बढ़ा दिया है।
ऐसे में यह जरूरी है कि जीविका के लिए वैकल्पिक मार्ग तलाशे जाएं। जीविका का शाब्दिक अर्थ है एक ऐसा व्यवसाय, जिसके द्वारा जीवन में आगे बढ़ने एवं उन्नति के अवसरों का लाभ उठाया जा सके। यह मात्र एक कोरा शब्द नहीं है, इससे अभिप्राय मात्र एक रोजगार का चयन नहीं है। इसका तात्पर्य उन विभिन्न पदों से हैं, जो क्रियाशील व सार्थक समाज का निर्माण कर सके। व्यापक अर्थों में जीविका किसी समाज व व्यक्ति की जीवन संरचना का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे कम लागत, कम पूँजी व अपेक्षाकृत कम जगह में किया जा सकता है। यह किसान को आर्थिक रूप से सुदृढ़ व शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
असल में बकरी एक छोटा जानवर है, जिसे सरलतापूर्वक पाला जा सकता है। इन्हें दूध व मांस के लिए भूमिहीन तथा सीमांत कृषकों द्वारा पाला जाता है। बकरी की मेंगनी व मूत्र जो बिछावन पर एकत्र होते हैं, एक अच्छे खाद की तरह उपयोग में आते हैं। निश्चय ही इस तरह के प्रयोगों से भूमि पर निर्भरता कम होगी व हम स्वावलंबी समाज की दिशा में बढ़ सकेंगे।

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