चमत्कारिक गुणों से भरपूर है बकरी का दूध
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आमतौर पर बकरी को गरीब आदमी की गाय कहा जाता है। इसकी वजह है कि इसे ज्यादातर गरीब तबके के लोग ही पालते हैं। लेकिन ऐसा कहना इस पशु के गुणों को कम कर आंकने जैसा है। वृहद आर्थिक स्तर पर भी देखा जाए तो केवल भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बकरी के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। देश भर में बकरी की आबादी करीब 15.4 करोड़ है और इस पूरी आबादी से प्राप्त होने वाले मांस, दूध एवं अन्य उत्पादों की अनुमानित कीमत 22,138 करोड़ रुपये सालाना है। इसमें करीब 12,000 करोड़ रुपये का मांस, 5,500 करोड़ रुपये मूल्य का दूध, 800 करोड़ रुपये की खाल और करीब 1,600 करोड़ रुपये की खाद मिलती है। बकरी के दूध उत्पादन की विकास रफ्तार काफी तेज रही है और 2002 से 2011 के बीच यह 36.4 लाख टन से बढ़कर करीब 46 लाख टन हो गया। पर विडंबना यह है कि बच्चों व बुढों के लिए सर्वोत्तम आहार माने जाने वाला बकरी का दूध आज भी बाजार में उपलब्ध नहीं है।
बकरी के दूध में वसा यानी फैट के कण बहुत छोटे होते हैं जिससे ये सुपाच्य होते हैं। ज्यादा आसानी से पचने वाले यह वसीय अम्ल उच्च रक्तचाप, मधुमेह, क्षयरोग और कैंसर आदि रोगों के इलाज में उपयोगी होता है। बकरी के दूध में 35 फीसदी वसा मध्यम प्रकार की होती है जबकि गाय के दूध में ये मात्र 17 फीसदी होती है। यही वजह है कि इसे गाय के दूध से हल्का माना जाता है और यह दूध मोटापा नियंत्रित करने में सहयोगी होता है। यही नहीं बकरी के दूध में प्रोटीन और लाभप्रद अमीनो ऐसिड का संयोजन बेहतर होता है, जो इसे अनुत्तेजक विशेषता प्रदान करते हैं और इससे संक्रमणों के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधी क्षमता भी बढ़ती है। असल में बकरी के दूध से उच्च स्तर का 6 से 10 आवश्यक अमीनो एसिड प्राप्त होता है।
बकरी के दूध में गाय के दूध की तुलना में लेक्टोज (शर्करा) की मात्रा कम होती है। लेक्टोज को न पचा पाने वाले लोग भी बकरी का दूध पी सकते हैं। नियमित रूप से बकरी का दूध पीने से एनीमिया यानी खून की कमी से पीडित मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह दूध हीमोग्लोबिन बनने में मदद करता है।
असल में बकरी के दूध की रासायनिक संरचना काफी हद तक मां के दूध के जैसा होती है और उसी की तरह सुपाच्य भी। बकरी का दूध बीमार बच्चे, बूढ़े तथा घाव व हड्डी की समस्याओं में अति उपयोगी है । खुले में चरते हुए बकरी कई प्रकार की जड़ी बूटियों का सेवन करती है, जो इनके दूध में रिसकर मनुष्य को रोग से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं। साफ, स्वस्थ तथा बोक (नर बकरा) से अलग रखे बकरी के शुद्ध दूध में कोई गंध नहीं होती तथा इसे छोटे बच्चे इलायची फ्लेवर में चाव से पीते हैं।
एक वैज्ञानिक अनुसंधान में यह बात भी सामने आई है कि बकरी का दूध एड्स के मरीजों की प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने में मददगार होता है। कुल नौ महिने तक एड्स के मरीजों पर बकरी के दूध के प्रभाव का अध्ययन किया गया और पाया गया कि बकरी का दूध पीने वाले मरीजों में शुरूआती माह में ही सीडी 4 काउंट्स में उल्लेखनीय प्रगति हुई। अनुसंधान में यह भी पता चला है कि अन्य दुधारू पशुओं के दूध के मुकाबले बकरी के दूध में मौजूद करीब तीन गुना अधिक सेलेनियम की मात्रा रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
देश के ग्रामीण इलाकों में बकरी पालन पारंपरिक रूप से एक बडा व्यवसाय रहा है। कई जगह बकरों की बलि का धार्मिेक रिवाज भी है। स्वास्थ्य लाभ और अन्य कई उपचारात्मक वजहों से चिकित्सक इसका उपयोग करने की सलाह देते हैं। शायद इन्हीं वजहों से अपनी महान प्राचीन सभ्यता और विरासत के लिए मशहूर पिरामिडों के देश मिस्त्र में बकरी को एक पवित्र पशु के रूप में देखा जाता है और उसका धार्मिक महत्व है।
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